Sunday, October 12, 2008

Merit & Demerit of Wi-Fi

इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए वायरलेस तकनीक के आने से काफ़ी सुविधा हो गई है. जहाँ कुछ लोग इसके फ़ायदे गिना रहे है वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो इसके संभावित दुष्प्रभावों से चिंतित है.

कंप्यूटर, इंटरनेट और ई-मेल से शुरू हो कर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली नित नई खोज से ऐसा लगता है कि आपसी बातचीत से लेकर दिनचर्या के हर काम में संचार तकनीक ने क्रांति ला दी है.

कुछ साल पहले जहाँ कमरे के किसी कोने में बैठकर इंटरनेट के ज़रिए बाहरी दुनिया से संपर्क स्थापित किया जाता था वहीं अब लैपटाप औऱ वायरलेस तकनीक के आने से ये काम और भी आसान हो गया है.

वायरलेस या वाई फ़ाई तकनीक यानी बिना तारो के झंझट के कंप्यूटर को इंटरनेट से कनेक्ट करना और सबसे बड़ा फ़ायदा ये कि घर या दफ़्तर से बाहर भी इंटरनेट से जुड़े रहा जा सकता है.

आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोफ़ेसर धीरज सांघी बताते है कि वाई फ़ाई तकनीक किस तरह से काम करती है.

तकनीक

उन्होंने बताया, "इस तकनीक में ऐसे फ़्रीक्वैंसी बैंड को इस्तेमाल में लाया जाता है जिसे आईएसएम बैंड कहते है और ये मुफ़्त उपलब्ध है यानी इसके लाइसेंस के लिए कंपनियाँ सरकार को पैसे का भुगतान नहीं करती. इस फ़्रीक्वैंसी बैंड में एक एक्सेस प्वाइंट और एक कंप्यूटर होता है. एक्सेस प्वाइंट इंटरनेट से कनेक्ट रहता है और डाटा पैकेट आईएसएम बैंड के ज़रिए कंप्यूटर से एक्सेस प्वाइंट तक जाता है और एक्सेस प्वाइंट से इंटरनेट पर चला जाता है."

इस तकनीक में ऐसे फ़्रीक्वैंसी बैंड को इस्तेमाल में लाया जाता है जिसे आईएसएम बैंड कहते है और ये मुफ़्त उपलब्ध है यानी इसके लाइसेंस के लिए कंपनियाँ सरकार को पैसे का भुगतान नहीं करती. इस फ़्रीक्वैंसी बैंड में एक एक्सेस प्वाइंट और एक कंप्यूटर होता है. एक्सेस प्वाइंट इंटरनेट से कनेक्ट रहता है और डाटा पैकेट आईएसएम बैंड के ज़रिए कंप्यूटर से एक्सेस प्वाइंट तक जाता है और एक्सेस प्वाइंट से इंटरनेट पर चला जाता है
प्रोफ़ेसर धीरज सांघी

वाई फ़ाई तकनीक से हम कंप्यूटर को उसी तरह से उपयोग में ला सकते है जैसे मोबाइल फ़ोन को इस्तेमाल में लाना संभव हुआ है यानी बिना तारों के एक जगह बंधे रहकर काम करने की ज़रूरत कम हो गई है. लेकिन कई समानताओं के बावजूद मोबाइल फ़ोन और वाई फ़ाई तकनीक में अंतर है.

प्रोफ़ेसर धीरज सांघी कहते है कि मोबाइल फ़ोन में टावर की रेंज 10 -15 किलोमीटर तक हो सकती है जबकि वाई फ़ाई तकनीक में ये क्षमता महज 50-100 मीटर तक ही होती है. इसलिए इस तकनीक को दफ़्तरों या घरो में इस्तेमाल में लाया जाता है.

कुछ विशेषज्ञो ने ये सवाल उठाए है कि लंबे समय तक वाई फ़ाई तकनीक का इस्तेमाल करने और रेडियो तरंगो से विकिरण के प्रभाव में रहना सेहत के लिए नुक़सानदेह हो सकता है.

नुक़सान

मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँचता है या नहीं- इस पर तो रिसर्च चल ही रही है पर अब वाई फ़ाई तकनीक के प्रयोग और स्वास्थ पर उसके प्रभाव पर रिसर्च किए जाने की ज़रूरत समझी जा रही है.

एक वर्ग ऐसा है जो इसके लाभ गिनाता है

लंबे समय तक रेडियो तरंगों के विकिरण में आने से किस तरह के प्रभाव होते हैं- इस पर शोध से जुड़े़ स्वीडन में कैरोलिन्सका इन्स्टीट्यूट के ओली योहान्सिन बताते हैं, "अभी तक के नतीजों से लगता है कि गुणसूत्रो में कमी आती है, एकाग्रता भी प्रभावित होती है याद्दाश्त कमज़ोर होती है.यहाँ तक की कैंसर की आशंका को पूरी तरह से ख़ारिज नहीं किया जा सकता.”

महत्वपूर्ण सवाल ये है कि वाई फ़ाई तकनीक में विकिरण जिस स्तर पर होता है क्या वो हानिकारक है. ब्रिटेन में ये तकनीक बेहद लोकप्रिय हो रही है और स्कूलो में भी प्रयोग में लाई जा रही है.

कई स्थानो पर मोबाइल फ़ोन के मास्ट्स या टावर की तर्ज़ पर वाई फ़ाई तकनीक को सक्रिय करने के लिए मास्ट्स लगाई जाती है.

पिछले कुछ समय से जो लोग व्यवहार में बदलाव या चिड़चिड़ापन महसूस कर रहे हैं. उन्हें आशंका है कि इसका कारण रेडिएशन या विकिरण के प्रभाव में आना हो सकता है. ऐसे लोगो को हाइपर सेंसेटिव टू रेडिएशन कहा जाता है.

ऐसी ही एक महिला सिल्विया कहती है, " मुझे अपने सिर और चेहरे में जलन महसूस होती है. मुझे ऐसा लगता है कि मेरे पेट में गड़बड़ है और मुझे उल्टी होने वाली है. साथ ही मेरे सिर के पिछले हिस्से में दर्द होता है."

'हानिकारक नहीं'

हालाँकि अमरीका की कैलीफ़ोर्निया यूनीवर्सिटी में कंप्यूटर विभाग में प्रोफ़ेसर राजीव बगड़ोदिया कहते है कि अभी तक इस तरह का कोई नतीजा नहीं आया है जिससे पता चलता हो कि विकिरण का स्तर स्वास्थ से लिए हानिकारक है और अगर रेडिएशन से बचने के नज़रिए से मोबाइल फ़ोन और वाई फ़ाई की तुलना करें तो वाई फ़ाई का इस्तेमाल करना ज़्यादा सुरक्षित है.

जब विश्व स्वास्थ संगठन की वेबसाइट पर ये लिखा गया था तो उसका यही अर्थ था कि अभी तक वाई फ़ाई सुविधा से स्वास्थ्य को क्या नुक़सान पहुँचता है. उस बारे में पुख़्ता जानकारी नहीं है. जब भी हम ये जानने में सफल होंगे कि हाँ इससे नुक़सान होता है तो हम इस पर पुनर्विचार करेंगें. क्योंकि रिव्यू पैनल हर स्टडी या शोध पर पूरी तरह विचार करने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचता है
माइकल रेपाचोली

उन्होंने कहा, "सैलफ़ोन हम अपने कान पर लगाकर ही इस्तेमाल में लाते है इसलिए स्वास्थ पर दुष्प्रभाव की आशंका हो सकती है लेकिन वाई फ़ाई तकनीक के ज़रिए लैपटाप कम्पयूटर का उपयोग शरीर से थोड़ी दूरी पर होता है और इसी दूरी के कारण विकिरण का स्तर तुलनात्मक रूप से कम हो जाता है. इसी कारण वाई फ़ाई से कोई ख़ास हानि नहीं पहुँचनी चाहिए."

विश्व स्वास्थ संगठन या डब्लूएचओ का भी अभी तक यही मानना है कि वाई फ़ाई कनेक्शन से विकिरण का स्तर निर्धारित सीमा से काफ़ी कम है इसलिए चिंता की बात नहीं है यूनिवर्सिटी आफ रोम में प्रोफ़ेसर और डब्लूएचओ में काम कर चुके माइकल रेपाचोली कहते है कि अगर दुष्प्रभावो के बारे में अगर प्रमाण मिलते है तो ज़रूरी कदम उठाए जाएंगे.

उनका कहना है, "जब विश्व स्वास्थ संगठन की वेबसाइट पर ये लिखा गया था तो उसका यही अर्थ था कि अभी तक वाई फ़ाई सुविधा से स्वास्थ्य को क्या नुक़सान पहुँचता है. उस बारे में पुख़्ता जानकारी नहीं है. जब भी हम ये जानने में सफल होंगे कि हाँ इससे नुक़सान होता है तो हम इस पर पुनर्विचार करेंगें. क्योंकि रिव्यू पैनल हर स्टडी या शोध पर पूरी तरह विचार करने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचता है."

लेकिन ब्रिटेन में हैल्थ प्रोटेक्शन एजेंसी के चेयरमैन सर विलियम स्टीवर्ट इस बात से इनकार करते हुए कहते हैं, "वो ग़लत है क्योंकि प्रमाण उपलब्ध है कि स्वास्थ को हानि पहुँच सकती है. मैं इतना ही कहूँगा कि उन्हें अपने बयान पर पुनर्विचार करना चाहिए."

जहाँ कुछ जानकार रेडिएशन से होने वाले प्रभाव पर और रिसर्च किए जाने और बड़े पैमाने पर वाई फ़ाई तकनीक के इस्तेमाल से पहले उनके नतीजों को समझने की आवश्यकता महसूस कर रहे है वहीं कुछ विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि वाई फ़ाई तकनीक से विकिरण का स्तर बेहद कम है और नुक़सान देह तो बिल्कुल भी नहीं है.

पर शायद इस बहस ने वायरलेस तकनीक का प्रयोग करने वाले लोगो को दोबारा सोचने पर ज़रूर मजबूर कर दिया है.

0 comments :